जिन पर मैं थोड़ा सा भी आसान हुआ हूँ
वही बता सकते हैं कितना मुश्किल था मैं
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कम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाए
क़ुर्ब का उस के उठा कर फ़ाएदा
वो दिन भी थे कि इन आँखों में इतनी हैरत थी
सब आसान हुआ जाता है
बड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझे
हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम
तो क्या मरना भी अब मुमकिन नहीं है
फ़ासला रख के भी क्या हासिल हुआ
दुनिया शायद भूल रही है
निगाह नीची हुई है मेरी
जो कहता है कि दरिया देख आया
पता नहीं ये तमन्ना-ए-क़ुर्ब कब जागी