झूट पर उस के भरोसा कर लिया
धूप इतनी थी कि साया कर लिया
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कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले
अब मुझे कौन जीत सकता है
किस एहसास-ए-जुर्म की सब करते हैं तवक़्क़ो
सामने तेरे हूँ घबराया हुआ
जैसे ये मेज़ मिट्टी का हाथी ये फूल
उम्र भर किस ने भला ग़ौर से देखा था मुझे
मंज़िलों पर हम मिलें ये तय हुआ
अपने तमाशे का टिकट
बड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझे
बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे
फ़ासला रख के भी क्या हासिल हुआ
एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़