नूर Poetry (page 26)

कभी ख़ंदाँ कभी गिर्यां कभी रक़सा चलिए

अली सरदार जाफ़री

आँधियाँ चलती रहें अफ़्लाक थर्राते रहे

अली सरदार जाफ़री

मेहमान-दारी

अली मंज़ूर हैदराबादी

मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी

अली जव्वाद ज़ैदी

वो शख़्स अमर है, जो पीवेगा दो चाँदों के नूर

अली अकबर नातिक़

उठेंगे मौत से पहले

अली अकबर नातिक़

सुर्मा हो या तारा

अली अकबर नातिक़

सफ़ीर-ए-लैला-3

अली अकबर नातिक़

नौहा

अली अकबर नातिक़

मिरे चराग़ बुझ गए

अली अकबर नातिक़

हुजूम-ए-गिर्या

अली अकबर नातिक़

रो चले चश्म से गिर्या की रियाज़त कर के

अली अकबर नातिक़

हवा के तख़्त पर अगर तमाम उम्र तू रहा

अली अकबर नातिक़

हरीम-ए-दिल, कि सर-ब-सर जो रौशनी से भर गया

अली अकबर नातिक़

ग़ुंचा ग़ुंचा हँस रहा था, पती पत्ती रो गया

अली अकबर नातिक़

दिन का समय है, चौक कुएँ का और बाँकों के जाल

अली अकबर नातिक़

चाँदी वाले, शीशे वाले, आँखों वाले शहर में

अली अकबर नातिक़

ग़ुबार-ए-नूर है या कहकशाँ है या कुछ और

अली अकबर अब्बास

नज़्म तकमील

अलीना इतरत

बगूला बन के नाचता हुआ ये तन गुज़र गया

अलीना इतरत

वो अर्ज़-ए-ग़म पे मश्वरा-ए-इख़्तिसार दे

अलीम उस्मानी

इक मुंतज़िर-ए-वादा की शम्अ जली होगी

अलीम मसरूर

करना पड़ा था जिस के लिए ये सफ़र मुझे

अलीम अफ़सर

यादें

अख़्तर-उल-ईमान

तन्हाई में

अख़्तर-उल-ईमान

सुकून

अख़्तर-उल-ईमान

बिंत-ए-लम्हात

अख़्तर-उल-ईमान

शश-जिहत

अख़्तर उस्मान

हिसार-ए-क़र्या-ए-खूँबार से निकलते हुए

अख्तर शुमार

ओ देस से आने वाले बता

अख़्तर शीरानी

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