नूर Poetry (page 28)

इक शहर था इक बाग़ था

ऐन ताबिश

इल्म की ज़रूरत

अहमक़ फफूँदवी

फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ

अहमद ज़िया

मैं यूँ तो नहीं है कि मोहब्बत में नहीं था

अहमद ज़फ़र

सुब्ह-ए-वजूद हूँ कि शब-ए-इंतिज़ार हूँ

अहमद शनास

मेरी रातों का सफ़र तूर नहीं हो सकता

अहमद शनास

ख़ुश नहीं आए बयाबाँ मिरी वीरानी को

अहमद शहरयार

काली रात के सहराओं में नूर-सिपारा लिक्खा था

अहमद सलमान

सराब

अहमद राही

लम्हा

अहमद नदीम क़ासमी

दरांती

अहमद नदीम क़ासमी

बस चंद लम्हे पेश-तर वो पाँव धो के पल्टा है

अहमद ख़याल

शहर-ए-सदमात से आगे नहीं जाने वाला

अहमद ख़याल

दश्त ओ जुनूँ का सिलसिला मेरे लहू में आ गया

अहमद ख़याल

वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ

अहमद हुसैन माइल

हमदर्द

अहमद फ़राज़

वक़्त के हर इक नक़्श का मअ'नी इतना बदला बदला होगा

अहमद फ़क़ीह

इक अश्क बहा होगा

अहमद अता

इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

मूजिद जो नूर का है वो मेरा चराग़ है

आग़ा हज्जू शरफ़

रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में

आग़ा हज्जू शरफ़

पुर-नूर जिस के हुस्न से मदफ़न था कौन था

आग़ा हज्जू शरफ़

परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का

आग़ा हज्जू शरफ़

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में

आग़ा हज्जू शरफ़

लुटा रहा हूँ मैं लाल-ओ-गुहर अँधेरे में

अफ़ज़ल इलाहाबादी

हज़ीमतें जो फ़ना कर गईं ग़ुरूर मिरा

आफ़ताब इक़बाल शमीम

बात एक जैसी है हज्व या क़सीदा लिख

आफ़ताब इक़बाल शमीम

क़दम क़दम पे किसी इम्तिहाँ की ज़द में है

आफ़ताब हुसैन

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