क्षितिज Poetry (page 4)

बनारस

रियाज़ लतीफ़

हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए

रियाज़ लतीफ़

तजस्सुस

रिफ़अत सरोश

बुढ़ापा

रज़ी रज़ीउद्दीन

इन्ही गलियों में इक ऐसी गली है

राज़ी अख्तर शौक़

सुकूँ है हमनवा-ए-इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता

रविश सिद्दीक़ी

उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे

रौनक़ रज़ा

देख उफ़ुक़ के पीले-पन में दूर वो मंज़र डूब गया

रौनक़ रज़ा

उमूद हो के उफ़ुक़ में बदल रहे हैं सुतून

रउफ़ ख़लिश

हाथ से छू कर ये नीला आसमाँ भी देखते

राशिद मुफ़्ती

ज़ाद-ए-सफ़र

राशिद आज़र

हुदूद का दाएरा

राशिद आज़र

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

आया उफ़ुक़ की सेज तक आ कर पलट गया

रशीद क़ैसरानी

मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कहाँ तलाश करूँ अब उफ़ुक़ कहानी का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हम हैं मंज़र सियह आसमानों का है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हमें लपकती हवा पर सवार ले आई

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या

राजेन्द्र मनचंदा बानी

क्या बात थी कि जो भी सुना अन-सुना हुआ

राज नारायण राज़

निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे

रहमत क़रनी

पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई

राही कुरैशी

अभी मिरा आफ़्ताब उफ़ुक़ की हुदूद से आश्ना नहीं है

इक़बाल कौसर

कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की

इक़बाल अशहर

हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँ

इक़बाल अंजुम

टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में

इंद्र सरूप श्रीवास्तवा

दिल पर किसी पत्थर का निशाँ यूँ ही रहेगा

इनाम नदीम

क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद

इकराम जनजुआ

शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तज़ाद

हिमायत अली शाएर

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