क्षितिज Poetry (page 2)

ख़्वाब देखता हूँ

सुरूर बाराबंकवी

और कोई दम की मेहमाँ है गुज़र जाएगी रात

सुरूर बाराबंकवी

हर इक लम्हा हमें हम से जुदा करती हुई सी

सुल्तान अख़्तर

रोज़ ओ शब इस सोच में डूबा रहता हूँ

सुलेमान ख़ुमार

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

ख़ुद-कुशी

सूफ़ी तबस्सुम

बंद हो जाए मिरी आँख अगर

सूफ़ी तबस्सुम

शायद रुख़-ए-हयात से सरके नक़ाब और

सिराजुद्दीन ज़फ़र

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

इक उम्र फ़साने ग़म-ए-जानाँ के गढ़े हैं

शोहरत बुख़ारी

अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ

शोएब निज़ाम

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

शाज़ तमकनत

ज़ख़्म सीने का फिर उभर आया

शायान क़ुरैशी

लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

उन का वादा बदल गया है

शमीम करहानी

दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है

शकेब जलाली

रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी

शहज़ाद क़ैस

सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो

शहज़ाद अहमद

नया उफ़क़

शहरयार

मेरी ज़मीं

शहरयार

ये क्या हुआ कि तबीअ'त सँभलती जाती है

शहरयार

तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ

शहरयार

मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है

शहरयार

दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो

शहरयार

कहीं कुछ नहीं होता

शाहिद माहुली

मिरी नज़र कि तरह दिल परिंद ओझल है

शाहिद जमील

इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है

शहबाज़ ख़्वाजा

यही सुलूक मुनासिब है ख़ुश-गुमानों से

शबनम रूमानी

उम्मीद के उफ़ुक़ से न उट्ठा ग़ुबार तक

शानुल हक़ हक़्क़ी

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