पुल Poetry (page 23)

जब अश्कों में सदाएँ ढल रही थीं

अम्बरीन सलाहुद्दीन

बाहर सारे मैदाँ जीत चुका था वो

अम्बर बहराईची

जलते हुए जंगल से गुज़रना था हमें भी

अम्बर बहराईची

हँसते हुए चेहरे में कोई शाम छुपी थी

अम्बर बहराईची

गीली मिट्टी हाथ में ले कर बैठा हूँ

अम्बर बहराईची

दरवाज़ा वा कर के रोज़ निकलता था

अम्बर बहराईची

हुब्ब-ए-वतन

अल्ताफ़ हुसैन हाली

रात सुब्ह-ए-बहार होगी

अल्ताफ़ अहमद कुरेशी

तराना-ए-मिल्ली

अल्लामा इक़बाल

तालाब इरादे का भरे पल में लबालब

अलीमुल्लाह

अब भी रौशन हैं

अली सरदार जाफ़री

अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा

अली सरदार जाफ़री

इतनी बार मोहब्बत करना कितना मुश्किल हो जाता है

अली इमरान

मुस्तहिक़ वो लज़्ज़त-ए-ग़म का नहीं

अली अहमद जलीली

मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता है

अलीना इतरत

ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से

आलम ख़ुर्शीद

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा

आलम ख़ुर्शीद

हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं

आलम ख़ुर्शीद

लहू तेज़ाब करना चाहता है

अकरम नक़्क़ाश

हैरत के दफ़्तर जाऊँ

अकरम नक़्क़ाश

गुज़रते दौड़ते लम्हे हिसाब में लिखिए

अकमल इमाम

यादें

अख़्तर-उल-ईमान

तर्ग़ीब और उस के ब'अद

अख़्तर-उल-ईमान

मेरा दोस्त अबुल-हौल

अख़्तर-उल-ईमान

एक एहसास

अख़्तर-उल-ईमान

गर्द-बाद

अख़्तर उस्मान

तिरे बग़ैर मसाफ़त का ग़म कहाँ कम है

अख्तर शुमार

लरज़ उठा है मिरे दिल में क्यूँ न जाने दिया

अख्तर शुमार

जो क़तरे में समुंदर देखते हैं

अख़तर शाहजहाँपुरी

इक उम्र भटकते रहे घर ही नहीं आया

अख़तर शाहजहाँपुरी

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