बाहर सारे मैदाँ जीत चुका था वो
घर लौटा तो पल भर में ही टूटा था
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
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Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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हँसते हुए चेहरे में कोई शाम छुपी थी
दरवाज़ा वा कर के रोज़ निकलता था
मैं अपनी वुसअतों को उस गली में भूल जाता हूँ
शब ख़्वाब के जज़ीरों में हँस कर गुज़र गई
हम ख़्वाब-ज़दा
इम्बिसात-ए-अज़ली
आज फिर धूप की शिद्दत ने बड़ा काम किया
गीली मिट्टी हाथ में ले कर बैठा हूँ
हम पी भी गए और सलामत भी हैं 'अम्बर'
एक रियाज़त ये भी
युधिष्ठिर
उस ने हर ज़र्रे को तिलिस्म-आबाद किया