आम के पेड़ों के सारे फल सुनहरे हो गए
इस बरस भी रास्ता क्यूँ रो रहा था देखते
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गुलाबी चोंच
सूप के दाने कबूतर चुग रहा था और वो
वो लम्हा मुझ को शश्दर कर गया था
दरवाज़ा वा कर के रोज़ निकलता था
उस ने हर ज़र्रे को तिलिस्म-आबाद किया
हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा
बाहर सारे मैदाँ जीत चुका था वो
मिरे चेहरे पे जो आँसू गिरा था
मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत
अब क़बीले की रिवायत है बिखरने वाली
गीली मिट्टी हाथ में ले कर बैठा हूँ