उस ने हर ज़र्रे को तिलिस्म-आबाद किया
हाथ हमारे लगी फ़क़त हैरानी है
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सूखी टहनी पर हरियल
ये सच है रंग बदलता था वो हर इक लम्हा
एक साहिर कभी गुज़रा था इधर से 'अम्बर'
हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा
एक रियाज़त ये भी
चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं
बाहर सारे मैदाँ जीत चुका था वो
मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत
मैं अपनी वुसअतों को उस गली में भूल जाता हूँ
क्यूँ न हों शाद कि हम राहगुज़र में हैं अभी
गीली मिट्टी हाथ में ले कर बैठा हूँ
एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़