फूल Poetry (page 30)

ये उस की मर्ज़ी कि मैं उस का इंतिख़ाब न था

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तमाशा अहल-ए-मोहब्बत ये चार-सू करते

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तेरे मेहमाँ के स्वागत का कोई फूल थे हम

हसीब सोज़

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला

हसीब सोज़

कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हसन रिज़वी

उस की आँखें हरे समुंदर उस की बातें बर्फ़

हसन रिज़वी

खिलने लगे हैं फूल और पत्ते हरे हुए

हसन रिज़वी

कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हसन रिज़वी

चुप हैं हुज़ूर मुझ से कोई बात हो गई

हसन रिज़वी

तय मुझ से ज़िंदगी का कहाँ फ़ासला हुआ

हसन निज़ामी

शाख़ से फूल को फिर जुदा कर दिया

हसन निज़ामी

याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा

हसन नईम

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

हसन नईम

किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है

हसन नईम

करें न याद वो शब हादिसा हुआ सो हुआ

हसन नईम

करें न याद शब-ए-हादिसा हुआ सो हुआ

हसन नईम

बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे

हसन नईम

आरज़ू थी कि तिरा दहर भी शोहरा होवे

हसन नईम

आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी

हसन नईम

खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे

हसन नासिर

आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

कल ख़्वाब में देखा सखी मैं ने पिया का गाँव रे

हसन कमाल

दश्त में फूल खिला रक्खा है

हसन जमील

तारीख़ की अदालत

हसन हमीदी

माज़ी में रह जाने वाली आँखें

हसन अकबर कमाल

वो शख़्स तो मुझे हैरान करता जाता था

हसन अकबर कमाल

उसे शिकस्त न होने पे मान कितना था

हसन अकबर कमाल

दुख उठाओ कितने ही घर बहार करने में

हसन अकबर कमाल

आज भी तेरी ही सूरत है मुक़ाबिल मेरे

हसन अकबर कमाल

शहर-ए-ना-पुरसाँ में कुछ अपना पता मिलता नहीं

हसन आबिदी

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