प्यार Poetry (page 12)

लम्हा लम्हा शुमार करता हूँ

रिफ़अत सुलतान

एक बे-रंग से ग़ुबार में हूँ

रिफ़अत सरोश

उस चाँद को तुम दिल में छुपा क्यूँ नहीं लेते

रियाज़ हान्स

झुक सके आप का ये सर तो झुका कर देखें

रज़ा जौनपुरी

पचास सालों में दो इक बरस का रिश्ता था

रज़ा अश्क

ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए

रौनक़ नईम

ज़बाँ पे हर्फ़ तो इंकार में नहीं आता

रऊफ़ ख़ैर

जवाँ रुतों में लगाए हुए शजर अपने

रासिख़ इरफ़ानी

शुऊर-ए-ज़ीस्त सही ए'तिबार करना भी

रशक खलीली

सुना कि ख़ूब है उस के दयार का मौसम

राशिद अनवर राशिद

सैराबी

राशिद आज़र

फ़ासला रक्खो ज़रा अपनी मुदारातों के बीच

राशिद आज़र

तुझ से भी हसीं है तिरे अफ़्कार का रिश्ता

रशीद क़ैसरानी

चाहत का संसार है झूटा प्यार के सात-समुंदर झूट

रशीद क़ैसरानी

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

गए दिनों की मुसाफ़िरत का ब-यक-क़लम इश्तिहार लिखना

रशीद एजाज़

हम ने तो इस इश्क़ में यारो खींचे हैं आज़ार बहुत

रसा चुग़ताई

कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह

राना सहरी

ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते

राम रियाज़

आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे

राम रियाज़

कैसे निकलूँ ख़ुमार से बाहर

रख़्शंदा नवेद

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी

राजेन्द्र कृष्ण

आख़िरी गाली

राजा मेहदी अली ख़ाँ

शमएँ जुगनू चाँद के हाले जम्अ करो

राज खेती

शमएँ जुगनू चाँद के हाले जम्अ' करो

राज खेती

रेत का शहर

रईस फ़रोग़

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

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