प्यार Poetry (page 14)

ऐ मौसम-ए-जुनूँ ये अजब तर्ज़-ए-क़त्ल है

इबरत मछलीशहरी

ये कारोबार भी कब रास आया

इब्न-ए-मुफ़्ती

अजब है खेल कैरम का

इब्न-ए-मुफ़्ती

ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के

इब्न-ए-मुफ़्ती

दिल वही अश्क-बार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

हम जंगल के जोगी हम को एक जगह आराम कहाँ

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है

हुरमतुल इकराम

जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है

हुरमतुल इकराम

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

अन-कही

हिमायत अली शाएर

तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

उतरने वाली दुखों की बरात से पहले

हज़ीं लुधियानवी

उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ

हज़ीं लुधियानवी

सैंडिलों और झाड़ूओं से रोज़ मुझ को झाड़ना

हातिम भट्टी

हम को अब भी नहर पर जा कर नहाना याद है

हातिम भट्टी

कोई ले कर ख़बर नहीं आता

हातिम अली मेहर

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते

हसरत जयपुरी

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते

हसरत जयपुरी

जो हमें चाहे उस के चाकिर हैं

हसरत अज़ीमाबादी

है रश्क-ए-वस्ल से ग़म-ए-दिलदार ही भला

हसरत अज़ीमाबादी

सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के

हाशिम रज़ा जलालपुरी

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