करीब Poetry (page 12)

मैं यूँ जहाँ के ख़्वाब से तन्हा गुज़र गया

फ़हीम शनास काज़मी

हर एक गाम पे आसूदगी खड़ी होगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

राह-ए-तलब में अहल-ए-दिल जब हद-ए-आम से बढ़े

एजाज़ वारसी

मिल सकेगी अब भी दाद-ए-आबला-पाई तो क्या

एजाज़ सिद्दीक़ी

रंग मौसम के साथ लाए हैं

एजाज़ रहमानी

मिरी हयात को बे-रब्त बाब रहने दे

एहतिशाम अख्तर

मर्दुम-गज़ीदा इंसान का इलाज

दिलावर फ़िगार

लंदन में जश्न-ए-ग़ालिब

दिलावर फ़िगार

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

मैं सुर्ख़ फूल को छू कर पलटने वाला था

दिलावर अली आज़र

'आज़र' रहा है तेशा मिरे ख़ानदान में

दिलावर अली आज़र

ज़रा निगाह उठाओ कि ग़म की रात कटे

द्वारका दास शोला

बुढ़ापे की चोटी

दर्शिका वसानी

कहानी एक रात की

दानिश फ़राज़ी

समंदर का सुकूत

चन्द्रभान ख़याल

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

आप अपने रक़ीब हैं हम लोग

बिर्ज लाल रअना

शफ़क़ से बाम-ए-फ़लक लाला-गूँ भी होता है

बिलाल अहमद

न क़रीब आ न तो दूर जा ये जो फ़ासला है ये ठीक है

भवेश दिलशाद

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

बताए देती है बे-पूछे राज़ सब दिल के

बेदम शाह वारसी

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

दूर साया सा है क्या फूलों में

बासिर सुल्तान काज़मी

उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है

बशीर बद्र

सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं

बशीर बद्र

दिल जो सूरत-गर-ए-मअ'नी का सनम-ख़ाना बने

बर्क़ देहलवी

तुम कब थे क़रीब इतने मैं कब दूर रहा हूँ

बाक़ी सिद्दीक़ी

तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

जुनूँ की राख से मंज़िल में रंग क्या आए

बाक़ी सिद्दीक़ी

दुश्मन-ए-जाँ कोई बना ही नहीं

बाक़र मेहदी

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