करीब Poetry (page 1)

ऐसा नहीं कि मुँह में हमारे ज़बाँ नहीं

फ़र्रुख़ जाफ़री

इक्कीसवीं सदी का इश्क़

मर्यम तस्लीम कियानी

किसी की सदा

इब्न-ए-सफ़ी

बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू

हबीब जालिब

कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं

अर्श सिद्दीक़ी

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

रद्द-ए-अमल

ज़ुबैर रिज़वी

हम

ज़िया जालंधरी

हरजाई

ज़िया जालंधरी

दूरी

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

शाम का पहला तारा (2)

ज़ेहरा निगाह

शहरी सहूलतें

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

जगह

ज़ीशान साहिल

मुद्दत हुई न मुझ से मिरा राब्ता हुआ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में

ज़की काकोरवी

लोग कहते रहे क़रीब है वो

ज़की काकोरवी

दरिया का चढ़ाव बाँध लेना

ज़काउद्दीन शायाँ

दस्त-ए-तलब दराज़ ज़ियादा न कर सके

ज़ैन रामिश

मेरा कोई दोस्त नहीं

ज़ाहिद इमरोज़

वो बज़्म से निकाल के कहते हैं ऐ 'ज़हीर'

ज़हीर काश्मीरी

तन्हाइयों में आती रही जब भी उस की याद

ज़हीर काश्मीरी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी

ज़हीर काश्मीरी

फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे

ज़हीर काश्मीरी

इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा

ज़हीर काश्मीरी

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