दूरी

मिरी नज़र में है अब तक वो शाम वो महफ़िल

वो इक हुजूम-ए-तरब वो नशात-ए-नग़्मा-ओ-नूर

शरीर लड़कियाँ रंगीन तितलियाँ बेताब

लबों पे गुल-कदा-ए-गुफ़्तगु खिलाए हुए

वो क़हक़हे वो मसर्रत की नुक़रई झंकार

और इस हुजूम में तुम जैसे गुलसिताँ में बहार

मैं अपने गोशा-ए-कम-ताब में हुजूम से दूर

उदास नज़रों में मद्धम दिए जलाए हुए

तुम आईं हँसती हुई आईं बर्क़ के मानिंद

मिरे क़रीब से कितनी क़रीब से गुज़रीं

भड़कता शोला था जैसे वो गोशा-ए-कम-ताब

मिरे क़रीब हो और किस क़दर क़रीब हो आज

नज़र नज़र में लिए क़हक़हों की ताबानी

फ़ज़ा में चाँद की किरनें निखर के बिखरी हैं

मगर कभी कभी जिस तरह कोई साया सा

तुम्हारी पलकों से कुछ कह के लौट जाता है

दबी दबी वही सरगोशियाँ वही आवाज़

कि इस जमाल ओ मसर्रत की तह में पिन्हाँ है

वो रूह-ए-तीरा जिसे इक किरन नसीब नहीं

मिरे क़रीब हो और कितनी दूर हो मुझ से

ख़ुशी का साथ तो है आँसुओं का साथ नहीं

हँसो और इतना हँसो तुम बरस पड़ें आँखें

फिर इन सुलगते हुए आँसुओं में बह जाए

वो दर्द और वो दूरी जो क़हक़हों में है

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Duri In Hindi By Famous Poet Zia Jalandhari. Duri is written by Zia Jalandhari. Complete Poem Duri in Hindi by Zia Jalandhari. Download free Duri Poem for Youth in PDF. Duri is a Poem on Inspiration for young students. Share Duri with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.