ऋण Poetry (page 3)

बर-सर-ए-दर्द ज़माने का भी सोचा जाए

साइम जी

दिए कितने अँधेरी उम्र के रस्तों में आते हैं

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

तो मिल भी जाए तो फिर भी तुझे तलाश करूँ

रूही कंजाही

हमारी जीत यही थी कि ख़ुद से हार आए

रौनक़ रज़ा

मैं जंग जीत के जब्र-ओ-अना की हार गया

रासिख़ इरफ़ानी

जो क़र्ज़ मुझ पे है वो बोझ उतारता जाऊँ

राशिद मुफ़्ती

ये बे-नवाई हमारी सौदा-ए-सर है घर में बसा दिया है

राशिद आज़र

कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर

राना आमिर लियाक़त

दिए जला के हवाओं के मुँह पे मार आया

रख़शां हाशमी

ख़िज़ाँ का क़र्ज़ तो इक इक दरख़्त पर है यहाँ

इक़बाल अशहर कुरेशी

शोर है उस सब्ज़ा-ए-रुख़्सार का

इमदाद अली बहर

किया सलाम जो साक़ी से हम ने जाम लिया

इमदाद अली बहर

मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरा ज़ेहन मुझ को रहा करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक उदास शाम के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हामी भी न थे मुंकिर-ए-'ग़ालिब' भी नहीं थे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

किसे हम अपना कहें कोई ग़म-गुसार नहीं

हसीब रहबर

मैं तर्क-ए-तअल्लुक़ पे भी आमादा हूँ लेकिन

हसन अब्बास रज़ा

सीने की ख़ानक़ाह में आने नहीं दिया

हसन अब्बास रज़ा

घर लौटते हैं जब भी कोई यार गँवा कर

हसन अब्बास रज़ा

मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब

हैदर क़ुरैशी

लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं

हैदर क़ुरैशी

जाँ-बख़्श लब के इश्क़ में ईज़ा उठाइए

हैदर अली आतिश

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