ऋण Poetry (page 4)

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

उधार

फ़ुर्क़त काकोरवी

मैं ख़ुद हूँ नक़्द मगर सौ उधार सर पर है

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

उम्र भर एक सी उलझन तो नहीं बन सकते

फ़े सीन एजाज़

ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया

फ़ातिमा हसन

अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया

फ़रियाद आज़र

अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया

फ़रियाद आज़र

ख़ुदा करे कि ये मिट्टी बिखर भी जाए अब

फ़ारूक़ बख़्शी

यक-ब-यक शोरिश-ए-फ़ुग़ाँ की तरह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फिर आईना-ए-आलम शायद कि निखर जाए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हसरत-ए-दीद में गुज़राँ हैं ज़माने कब से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

भगत-सिंह के नाम

फ़हीम शनास काज़मी

लहू ने क्या तिरे ख़ंजर को दिलकशी दी है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

रिश्वत-ख़ोर सरकारी मुलाज़मीन

दिलावर फ़िगार

अगर मैं उन की निगाहों से गिर गया होता

दानिश अलीगढ़ी

सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात

भवेश दिलशाद

दश्त में उड़ते बगूलों की ये मस्ती एक दिन

भारत भूषण पन्त

वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो

बशीर बद्र

मैं महल रेत के सहरा में बनाने बैठा

अज़हर नैयर

मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ

आज़ाद गुलाटी

सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया

अय्यूब ख़ावर

कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा

अतहर नफ़ीस

क्या वक़्त पड़ा है तिरे आशुफ़्ता-सरों पर

अतहर नफ़ीस

कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा

अतहर नफ़ीस

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