रास्ता Poetry (page 4)

कोठे उजाड़ खिड़कियाँ चुप रास्ते उदास

शोहरत बुख़ारी

बे-नश्शा बहक रहा हूँ कब से

शोहरत बुख़ारी

ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए

शेरी भोपाली

वो गुनगुनाते रास्ते ख़्वाबों के क्या हुए

शीन काफ़ निज़ाम

सिमट सिमट सी गई थी ज़मीं किधर जाता

शाज़ तमकनत

बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए

शाैकत वास्ती

पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए

शारिब मौरान्वी

ज़बाँ को हुक्म ही कहाँ कि दास्तान-ए-ग़म कहें

शमीम करहानी

मुझ को तिरे सुलूक से कोई गिला न था

शकील शम्सी

कट न पाए ये फ़ासले भी अगर

शकील जाज़िब

तुम शुजाअ'त के कहाँ क़िस्से सुनाने लग गए

शकील जमाली

कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है

शकील जमाली

दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है

शकील जमाली

इक आस का दिया तो दिल में जलाते जाओ

शकील ग्वालिआरी

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले

शकील बदायुनी

मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

शकील बदायुनी

तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे

शकेब जलाली

मिरे ख़ुलूस की शिद्दत से कोई डर भी गया

शकेब जलाली

जीने मरने के दरमियान एक साअत

शहज़ाद अहमद

दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था

शहज़ाद अहमद

रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया

शहज़ाद अहमद

सैगंधी

शहरयार

रतजगों का ज़वाल

शहरयार

फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ

शहरयार

हवा चले वरक़-ए-आरज़ू पलट जाए

शहरयार

सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के

शहनवाज़ ज़ैदी

मैं इंतिहा-ए-यास में तन्हा खड़ा रहा

शाहिद कलीम

ख़याल उन का सताए जा रहा है

शाहिद ग़ाज़ी

ना-गुज़ीर-ए-रिश्तगी सा है तो हो

शाह हुसैन नहरी

कितने आसान रास्ते होते

शबनम शकील

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