रास्ता Poetry (page 2)

वजूद उस का कभी भी न लुक़्मा-ए-तर था

ज़हीर सिद्दीक़ी

हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी

ज़हीर काश्मीरी

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

हर आदमी कहाँ औज-ए-कमाल तक पहुँचा

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

सिमटने की हवस क्या थी बिखरना किस लिए है

ज़फ़र इक़बाल

न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ

ज़फ़र इक़बाल

मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था

ज़फ़र इक़बाल

कभी अव्वल नज़र आना कभी आख़िर होना

ज़फ़र इक़बाल

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

अभी किसी के न मेरे कहे से गुज़रेगा

ज़फ़र इक़बाल

किसी के रास्ते की ख़ाक में पड़े हैं 'ज़फ़र'

ज़फ़र अज्मी

ख़ुशा ऐ ज़ख़्म कि सूरत नई निकलती है

ज़फ़र अज्मी

जान-ए-बे-ताब अजब तेरे ठिकाने निकले

ज़फ़र अज्मी

किसी कशिश के किसी सिलसिले का होना था

यासमीन हबीब

रू-ब-रू बुत के दुआ की भूल हो जाए तो फिर

याक़ूब तसव्वुर

रौशनी का क़ालिब जब तीरगी में ढलता है

यहया ख़ालिद

गई है शाम अभी ज़ख़्म ज़ख़्म कर के मुझे

वक़ार मानवी

दीवार-ओ-दर सा चाहिए दीवार-ओ-दर मुझे

विशाल खुल्लर

रही है यूँ ही नदामत मुझे मुक़द्दर से

विजय शर्मा अर्श

क़ज़ा जो दे तो इलाही ज़रा बदल के मुझे

वारिस किरमानी

हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था

उमर अंसारी

निगाहें नीची रखते हैं बुलंदी के निशाँ वाले

तुर्फ़ा क़ुरैशी

सफ़र अंजाम तक पहुँचे तो कैसे

तुफ़ैल चतुर्वेदी

निरवान

ताऊस

दूर तक ये रास्ते ख़ामोश हैं

तनवीर अंजुम

ख़ार चुनते हुए

तनवीर अंजुम

चार साल बा'द

तनवीर अंजुम

आज़ादी से नींदों तक

तनवीर अंजुम

तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का

तनवीर अंजुम

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