प्रकाश Poetry (page 2)

देर तक रौशनी रही कल रात

ज़ेहरा निगाह

तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया

ज़ेहरा निगाह

पुल-सिरात

ज़ेहरा निगाह

नया घर

ज़ेहरा निगाह

कल रात ढले

ज़ेहरा निगाह

अकेले होने का ख़ौफ़

ज़ेहरा निगाह

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

देर तक रौशनी रही कल रात

ज़ेहरा निगाह

शिकस्त-ए-आरज़ू

ज़ेहरा अलवी

सफ़ेद ख़रगोश की गेंद

ज़ीशान साहिल

लफ़्ज़

ज़ीशान साहिल

कश्ती

ज़ीशान साहिल

जंग के दिनों में

ज़ीशान साहिल

हद

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

इश्क़ की दीवानगी मिट जाएगी

ज़ीशान साहिल

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

फैली हुई है सारी दिशाओं में रौशनी

ज़ीशान साजिद

कब तक वो मोहब्बत को निभाता नज़र आता

ज़ीशान साजिद

हैं काम-काज इतने बदन से लिपट गए

ज़ीशान साजिद

ग़ुबार-ए-इश्क़ से हस्ती को भरने वाला हूँ मैं

ज़ीशान साजिद

सूरज ने इक नज़र मिरे ज़ख़्मों पे डाल के

ज़ेब ग़ौरी

है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले

ज़ेब ग़ौरी

तिरी यादों ने तन्हा कर दिया है

ज़मान कंजाही

ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे

ज़मान कंजाही

लबों की जुम्बिश नवा-ए-बुलबुल है शोख़ लहजा तिरा क़यामत

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

चीज़ जो भूल कर गई हुई थी

ज़हरा क़रार

चीज़ जो भूल कर गई हुई थी

ज़हरा क़रार

अजब क्या है रहे उस पार बहते जुगनुओं की रौशनी तहलील की ज़द में

ज़ाहिद मसूद

मेरा ग़ुस्सा कहाँ है?

ज़ाहिद इमरोज़

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