देर तक रौशनी रही कल रात
मैं ने ओढ़ी थी चाँदनी कल रात
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देखो तो लगता है जैसे देखा था
जिन बातों को सुनना तक बार-ए-ख़ातिर था
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था
रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने
भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ
ये उदासी ये फैलते साए
साअतें जो तिरी क़ुर्बत में गिराँ गुज़री थीं
एक पुरानी कहानी
तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की