दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
तन्हा नज़र आते हैं ग़म-ए-यार के होते
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कहानी गुल-ज़मीना की
एक फूल सा बच्चा
एक पुरानी कहानी
नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें
छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए
इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला
ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो
हम जो पहुँचे तो रहगुज़र ही न थी
भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ
लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए