सलीके Poetry (page 2)

दिल में किसी को रक्खो दिल में रहो किसी के

रसा रामपुरी

कोई पत्थर ही किसी सम्त से आया होता

राज नारायण राज़

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं

इक़बाल अज़ीम

सुख़न के सारे सलीक़े ज़बाँ में रखता है

इनाम-उल-हक़ जावेद

साहिर

हमीदा शाहीन

हुस्न-ए-अमल में बरकतें होती हैं बे-शुमार

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ग़ज़ल के पर्दे में बे-पर्दा ख़्वाहिशें लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे

फ़े सीन एजाज़

क्या बात थी कि उस को सँवरने नहीं दिया

फ़ातिमा वसीया जायसी

मुद्दत से वो ख़ुशबू-ए-हिना ही नहीं आई

फ़सीह अकमल

किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया

फ़रहत एहसास

किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया

फ़रहत एहसास

काँच के शहर में पत्थर न उठाओ यारो

फ़ैज़ुल हसन

रुस्वा भी हुए जाम पटकना भी न आया

एज़ाज़ अफ़ज़ल

जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता

दाग़ देहलवी

जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे

बेकल उत्साही

कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

इस इब्तिदा की सलीक़े से इंतिहा करते

अनवर मसूद

मैं उसे देख रही हूँ बड़ी हैरानी से

अंबरीन हसीब अंबर

मेहमान-दारी

अली मंज़ूर हैदराबादी

दिल बहलने के वसीले दे गया वो

अख़तर शाहजहाँपुरी

हम उन के नक़्श-ए-क़दम ही को जादा करते रहे

अहमद नदीम क़ासमी

ये वफ़ाएँ सारी धोके फिर ये धोके भी कहाँ

अहमद हमदानी

हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे

अहमद अता

शिकस्त-ए-अहद पर इस के सिवा बहाना भी क्या

अबुल हसनात हक़्क़ी

हमारे दुखों का इलाज कहाँ है

अबरार अहमद

मैं ने लोगों को न लोगों ने मुझे देखा था

आबिद मलिक

रिवायत

आदिल रज़ा मंसूरी

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