सवाल Poetry (page 2)

वस्ल भी हिज्र था विसाल न था

यशब तमन्ना

हर आँख इक सवाल तही-दस्त के लिए

यासीन ज़मीर

जो तू नहीं तो मौसम-ए-मलाल भी न आएगा

याक़ूब यावर

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ

वसी शाह

ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को

वक़ार वासिक़ी

आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ

वली मोहम्मद वली

मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ

वाली आसी

हमें तेरे सिवा इस दुनिया में किसी और से क्या लेना-देना

वाली आसी

तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है

वाली आसी

क्या हिज्र में जी निढाल करना

वाली आसी

हम अपने-आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते

वाली आसी

अपने अंदाज़ में औरों से जुदा लगते हो

वजीह सानी

ना-मुरादी ही लिखी थी सो वो पूरी हो गई

वजद चुगताई

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तिरे ग़ुरूर मिरे ज़ब्त का सवाल रहा

विजय शर्मा अर्श

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

विजय शर्मा अर्श

ख़ुद सवाल-ओ-जवाब करते रहो

उर्मिलामाधव

वो मौसमों पर उछालता है सवाल कितने

तुफ़ैल चतुर्वेदी

भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

त्रिपुरारि

नज़र उठा दिल-ए-नादाँ ये जुस्तुजू क्या है

तिलोकचंद महरूम

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे

तिलोकचंद महरूम

तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है

तसनीम आबिदी

बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर

तसनीम आबिदी

क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में

मीर तस्कीन देहलवी

कौन सा मैं जवाज़ दूँ सूरत-ए-हाल के लिए

तारिक़ क़मर

यहाँ के लोग हैं बस अपने ही ख़याल में गुम

तारिक़ मतीन

तिरी चाल धुन तिरी साँस सुर मिरे दिल को आ के सँभाल भी

तनवीर मोनिस

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