शमा Poetry (page 19)

मक़्सूद-ए-उल्फ़त

ग़ुलाम भीक नैरंग

जल्वा-ए-हुस्न अगर ज़ीनत-ए-काशाना बने

ग़ुबार भट्टी

अजब इंक़लाब का दौर है कि हर एक सम्त फ़िशार है

ग़ुबार भट्टी

दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई

ग़ालिब

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा

ग़ालिब

तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है

ग़ालिब

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

ग़ालिब

शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था

ग़ालिब

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था

ग़ालिब

रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा

ग़ालिब

नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब

ग़ालिब

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी

ग़ालिब

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो

ग़ालिब

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

ग़ालिब

है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में

ग़ालिब

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स

ग़ालिब

दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा

ग़ालिब

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे

ग़ालिब

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए

ग़ालिब

आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं

ग़ालिब

फैमली-प्लैनिंग

फ़ुर्क़त काकोरवी

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

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