मामला Poetry (page 25)

मैं संगलाख़ ज़मीनों के राज़ कहता हूँ

राज नारायण राज़

जब फ़राज़-ए-बाम पर वो जल्वा-गर होता नहीं

राज कुमार सूरी नदीम

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

राज कुमार क़ैस

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

हम न होते काख़-ए-मुश्त-ए-ख़ाक होता ग़ालिबन

राही फ़िदाई

इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है

इरफ़ान सत्तार

हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है

इरफ़ान सत्तार

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

ख़ुदा ने जिस को चाहा उस ने बच्चे की तरह ज़िद की

इक़बाल साजिद

दहर के अंधे कुएँ में कस के आवाज़ा लगा

इक़बाल साजिद

करें हिजरत तो ख़ाक-ए-शहर भी जुज़-दान में रख लें

इक़बाल कौसर

'इक़बाल' यूँही कब तक हम क़ैद-ए-अना काटें

इक़बाल कौसर

न तो काम रखिए शिकार से न तो दिल लगाइए सैर से

इंशा अल्लाह ख़ान

कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं

इंशा अल्लाह ख़ान

बंदगी हम ने तो जी से अपनी ठानी आप की

इंशा अल्लाह ख़ान

परेशाँ हूँ तिरा चेहरा भुलाया भी नहीं जाता

इमरान साग़र

यूँही उलझी रहने दो क्यूँ आफ़त सर पर लाते हो

इम्दाद इमाम असर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

रौशन हज़ार चंद हैं शम्स-ओ-क़मर से आप

इमदाद अली बहर

क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना

इमदाद अली बहर

मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

जिस को चाहो तुम उस को भर दो

इमदाद अली बहर

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

ग़ज़ब है देखने में अच्छी सूरत आ ही जाती है

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

दोस्तो दिल कहीं ज़िन्हार न आने पाए

इमदाद अली बहर

बोलिए करता हूँ मिन्नत आप की

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

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