मामला Poetry (page 26)

बद-तालई का इलाज क्या हो

इमदाद अली बहर

ऐसे पुर-नूर-ओ-ज़िया यार के रुख़्सारे हैं

इमदाद अली बहर

आहों से होंगे गुम्बद-ए-हफ़्त-आसमाँ ख़राब

इमदाद अली बहर

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत

इमाम बख़्श नासिख़

ज़ोर है गर्मी-ए-बाज़ार तिरे कूचे में

इमाम बख़्श नासिख़

सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

है मोहब्बत सब को उस के अबरू-ए-ख़मदार की

इमाम बख़्श नासिख़

शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ

इमाम अाज़म

किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा

इमाम अाज़म

गेसू ओ रुख़्सार की बातें करें

इमाम अाज़म

तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना

इफ़्तिख़ार राग़िब

दिल से जब आह निकल जाएगी

इफ़्तिख़ार राग़िब

बस एक ख़्वाब की सूरत कहीं है घर मेरा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इन्हीं में जीते इन्हीं बस्तियों में मर रहते

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अब भी तौहीन-ए-इताअत नहीं होगी हम से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये कौन आया

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

मर-मिटे जब से हम उस दुश्मन-ए-दीं पर साहब

हुसैन मजरूह

दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है

हुरमतुल इकराम

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है

हुमैरा राहत

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

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