अकेला Poetry (page 1)

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

जो महका रहे तेरी याद सुहानी में

बीना गोइंदी

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

हम को ख़ुलूस-ए-दिल का किसी ने सिला दिया है

अनवर ख़लील

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

ज़ूमिंग

अशफ़ाक़ हुसैन

जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा

ज़ुबैर रिज़वी

शाम होने वाली थी जब वो मुझ से बिछड़ा था ज़िंदगी की राहों में

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

दिल को रंजीदा करो आँख को पुर-नम कर लो

ज़ुबैर रिज़वी

छोड़ कर घर की फ़ज़ा रानाइयाँ पछता गईं

ज़ुबैर रिज़वी

भूली-बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी

ज़ुबैर रिज़वी

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

रेज़ा रेज़ा तिरे चेहरे पे बिखरती हुई शाम

ज़िया ज़मीर

इश्क़ जब तुझ से हुआ ज़ेहन के जुगनू जागे

ज़िया ज़मीर

तन्हा

ज़िया जालंधरी

तू ने नज़रों को बचा कर इस तरह देखा मुझे

ज़िया फ़तेहाबादी

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

शाम का पहला तारा (2)

ज़ेहरा निगाह

रास्ते

ज़ेहरा निगाह

क़िस्सा गुल-बादशाह का

ज़ेहरा निगाह

''अलिफ़'' और ''बे'' के नाम

ज़ेहरा निगाह

हर्फ़ हर्फ़ गूँधे थे तर्ज़ मुश्कबू की थी

ज़ेहरा निगाह

मिडिल-क्लास

ज़ेहरा अलवी

मैं उस की अंजुमन में अकेला नहीं गया

ज़ीशान साहिल

ऐसा है कौन जो मुझे हक़ तक रसाई दे

ज़ेबुन्निसा ज़ेबी

दिन तिरी याद में ढल जाता है आँसू की तरह

ज़ेब ग़ौरी

फ़िल्मी इश्क़

ज़रीफ़ जबलपूरी

किसी तरफ़ जाने का रस्ता कहीं नहीं

ज़मीर अज़हर

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