अकेला Poetry (page 3)
फिरे हैं धुन में तिरी हम इधर उधर तन्हा
ज़फ़र अकबराबादी
हर सम्त शोर-ए-बंदा ओ साहिब है शहर में
ज़फ़र अज्मी
पुकारता हूँ कि तुम हासिल-ए-तमन्ना हो
यूसुफ़ ज़फ़र
मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा
यूसुफ़ ज़फ़र
लम्हा लम्हा फैलती जाती है रात
यूसुफ़ तक़ी
जाने कितनी देर चलेगी साथ मिरे चमकीली धूप
यूसुफ़ तक़ी
दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा
यूसुफ़ तक़ी
इक बे-पनाह रात का तन्हा जवाब था
यासमीन हमीद
तेरे अल्ताफ़ का लुत्फ़ उठाते रहे
यशपाल गुप्ता
वस्ल भी हिज्र था विसाल न था
यशब तमन्ना
मसअलों की भीड़ में इंसाँ को तन्हा कर दिया
याक़ूब यावर
उस की याद और दर्द की सौग़ात मेरे साथ थी
यहया ख़ालिद
बाग़ों में आएगी कब बहार
यहया अमजद
मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
यगाना चंगेज़ी
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
यगाना चंगेज़ी
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
यगाना चंगेज़ी
अंधी काली रात का धब्बा
वज़ीर आग़ा
आवेज़िश
वज़ीर आग़ा
ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे
वसीम बरेलवी
न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है
वसीम बरेलवी
मेरा किया था मैं टूटा कि बिखरा रहा
वसीम बरेलवी
मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता
वसीम बरेलवी
बरसों बा'द मिला तो उस ने हम से पूछा कैसे हो
वक़ार फ़ातमी
उन की चश्म-ए-मस्त में पोशीदा इक मय-ख़ाना था
वक़ार बिजनोरी
ये हम को छोड़ के तन्हा कहाँ चले 'वामिक़'
वामिक़ जौनपुरी
इक हल्क़ा-ए-अहबाब है तन्हाई भी उस की
वामिक़ जौनपुरी
वो तन्हा मेरे ही दरपय नहीं है
वामिक़ जौनपुरी
क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए
वामिक़ जौनपुरी
अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है
वामिक़ जौनपुरी
कोई अपने वास्ते महशर उठा कर ले गया
वलीउल्लाह वली
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