अकेला Poetry (page 4)

साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट

वलीउल्लाह मुहिब

ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच

वलीउल्लाह मुहिब

असीरी बे-मज़ा लगती है बिन-सय्याद क्या कीजे

वली उज़लत

तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ

वली मोहम्मद वली

यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत

वकील अख़्तर

पत्थरों का मुग़न्नी

वहीद अख़्तर

उम्र को करती हैं पामाल बराबर यादें

वहीद अख़्तर

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके

वहाब दानिश

एक आदमी

वहाब दानिश

ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता

वहाब दानिश

जाने कितना जीवन पीछे छूट गया अनजाने में

विश्वनाथ दर्द

शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा

विजय शर्मा अर्श

कर्ब-ए-तन्हाई

वली मदनी

किस तरह भूले तिरे अल्फ़ाज़-ए-बेजा क्या करूँ

उर्मिलामाधव

उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर

उमर अंसारी

उस इक दिए से हुए किस क़दर दिए रौशन

उमर अंसारी

जो तीर आया गले मिल के दिल से लौट गया

उमर अंसारी

हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था

उमर अंसारी

तुम अच्छे थे तुम को रुस्वा हम ने किया

तौसीफ़ तबस्सुम

था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी

तौसीफ़ तबस्सुम

एक ख़्वाब

तौक़ीर अहमद

थकन की तल्ख़ियों को अरमुग़ाँ अनमोल देती है

ताैफ़ीक़ साग़र

मिरी सच्चाई हर सूरत तिरी मुट्ठी से निकलेगी

ताैफ़ीक़ साग़र

जैसे कश्ती और उस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

जैसे कश्ती और इस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

भटकें हैं आप के लिए तन्हा कहाँ कहाँ

तरुणा मिश्रा

पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ

तरकश प्रदीप

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