जब्त Poetry (page 10)

उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है

चकबस्त ब्रिज नारायण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे

बिस्मिल अज़ीमाबादी

न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे

बिस्मिल अज़ीमाबादी

आरज़ूएँ नज़्र-ए-दौराँ नज़्र-ए-जानाँ हो गईं

बिर्ज लाल रअना

करूँ क्या सख़्त मुश्किल आ पड़ी है

बिल्क़ीस ख़ान

न मिला तिरा पता तो मुझे लोग क्या कहेंगे

बेताब लखनवी

आप हैं बे-गुनाह क्या कहना

बेख़ुद देहलवी

में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश

बेदम शाह वारसी

सज़ा

बाक़र मेहदी

चाहा बहुत कि इश्क़ की फिर इब्तिदा न हो

बाक़र मेहदी

सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो

बक़ा बलूच

जान ले ले न ज़ब्त-ए-आह कहीं

बकुल देव

कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

ख़राबी

अज़्म बहज़ाद

कहीं गोयाई के हाथों समाअत रो रही है

अज़्म बहज़ाद

तेरी यादें हैं जिन्हें दिल में बसा रक्खा है

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

आतिश-ए-ख़ामोश

अज़ीज़ लखनवी

तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं

अज़ीज़ लखनवी

मुसीबत थी हमारे ही लिए क्यूँ

अज़ीज़ लखनवी

जो यहाँ महव-ए-मा-सिवा न हुआ

अज़ीज़ लखनवी

जाम ख़ाली जहाँ नज़र आया

अज़ीज़ लखनवी

इंतिहा-ए-इश्क़ हो यूँ इश्क़ में कामिल बनो

अज़ीज़ लखनवी

देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना

अज़ीज़ लखनवी

दरीचों में चराग़ों की कमी महसूस होती है

अज़हर अदीब

रूह ज़ख़्मी है जिस्म घायल है

आयुष चराग़

ज़ब्त करना न कभी ज़ब्त में वहशत करना

अय्यूब ख़ावर

यूँ भी मिली है मुझ को मिरे ज़ब्त-ए-ग़म की दाद

अयाज़ झाँसवी

दीवानगी ने ख़ूब करिश्मे दिखाए हैं

अयाज़ झाँसवी

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