जब्त Poetry (page 11)

मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

दरयाफ़्त कर लिया है बसाया नहीं मुझे

अासिफ़ा निशात

अक्स भी कब शब-ए-हिज्राँ का तमाशाई है

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था

अशअर नजमी

सीने में ज़ब्त-ए-ग़म से छाला उभर रहा है

आरज़ू लखनवी

क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं

आरज़ू लखनवी

हम आज खाएँगे इक तीर इम्तिहाँ के लिए

आरज़ू लखनवी

फ़िक्र सोई है सर-ए-शाम जगा दी जाए

अरशद कमाल

क्या साथ तिरा दूँ कि मैं इक मौज-ए-हवा हूँ

अर्श सिद्दीक़ी

जिस में हो दोज़ख़ का डर क्या लुत्फ़ उस जीने में है

अर्श मलसियानी

अगर तक़दीर तेरी बाइस-ए-आज़ार हो जाए

अर्श मलसियानी

हम हैं और ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ है आज-कल

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,

आरिफ़ इशतियाक़

रंगीं बना के दामन-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर को मैं

अनवर सहारनपुरी

शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे

अनवर साबरी

मोहब्बत हो तो बर्क़-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो

अनवर देहलवी

अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके

अनवर देहलवी

आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ

अनवर देहलवी

हँसी में टाल तो देता हूँ अक्सर

अंजुम ख़याली

आशुफ़्ता-नवाई से अपनी दुनिया को जगाता जाता हूँ

अमजद नजमी

बुज़दिल

अमजद इस्लाम अमजद

न सकत है ज़ब्त-ए-ग़म की न मजाल-ए-अश्क-बारी

आमिर उस्मानी

ग़म-ए-बेहद में किस को ज़ब्त का मक़्दूर होता है

आमिर उस्मानी

दर्द बढ़ता गया जितने दरमाँ किए प्यास बढ़ती गई जितने आँसू पिए

आमिर उस्मानी

शब को जब यूरिश-ए-विज्दान में आ जाते हैं

आमिर नज़र

हैरान बहुत ताबिश-ए-हुस्न-दीगराँ थी

अमीर हम्ज़ा साक़िब

शिद्दत-ए-शौक़ से अफ़्साने तो हो जाते हैं

अमीता परसुराम 'मीता'

गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी

अमीर मीनाई

ऐ ज़ब्त देख इश्क़ की उन को ख़बर न हो

अमीर मीनाई

तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त

अल्ताफ़ हुसैन हाली

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