जब्त Poetry (page 9)

तू कुछ तो मिरे ज़ब्त-ए-मोहब्बत का सिला दे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है

फ़ना निज़ामी कानपुरी

यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

कोई तसव्वुर में जल्वा-गर है बहार दिल में समा रही है

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

मेरे नदीम!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मर्ग-ए-सोज़-ए-मोहब्बत

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अगस्त1955

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जाम खनके तो सँभाला न गया दिल तुम से

एज़ाज़ अफ़ज़ल

याद उन की दिल में आई वो आसूदगी लिए

एजाज़ वारसी

किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो

एजाज़ वारसी

ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात

एजाज़ वारसी

तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद

एहतराम इस्लाम

तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद

एहतराम इस्लाम

तौबा की नाज़िशों पे सितम ढा के पी गया

एहसान दानिश

सोज़-ए-जुनूँ को दिल की ग़िज़ा कर दिया गया

एहसान दानिश

जबीं की धूल जिगर की जलन छुपाएगा

एहसान दानिश

जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा

एहसान दानिश

ज़ोम का ही तो आरिज़ा है मुझे

डॉक्टर आज़म

इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे

दत्तात्रिया कैफ़ी

कब ख़मोशी को मोहब्बत की ज़बाँ समझा था मैं

दर्शन सिंह

निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है

दाग़ देहलवी

खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से

दाग़ देहलवी

दिल परेशान हुआ जाता है

दाग़ देहलवी

बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया

दाग़ देहलवी

फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया

चरख़ चिन्योटी

है मिरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़ कर

चकबस्त ब्रिज नारायण

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

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