फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया
फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया
मैं बैठा गिन रहा था हसरतें उन का सलाम आया
हमारी शाम-ए-फ़ुर्क़त जैसे इक शाम-ए-चराग़ाँ थी
जो आँसू आया पलकों पर ब-हुस्न-ए-एहतिमाम आया
अधूरी किस तरह रहती कहानी इश्क़ की हमदम
इधर दम तोड़ता था मैं उधर उन का पयाम आया
उधर भी रौशनी फैली इधर भी रौशनी फैली
वो जब महफ़िल में आया सूरत-ए-माह-ए-तमाम आया
छिड़ी जब बात हुस्न-ओ-इश्क़ की बज़्म-ए-मोहब्बत में
कहीं पर तेरा नाम आया कहीं पर मेरा नाम आया
जवानी के ज़माने की बस इतनी सी कहानी है
जब उन की याद आई ज़ब्त का जज़्बा न काम आया
गदा-ए-मय-कदा बन कर गुज़ारी ज़िंदगी जिस ने
मुक़द्दर में उसी के रहमत-ए-साक़ी का जाम आया
बस इतना याद है मंज़िल-ब-मंज़िल हम-सफ़र थे वो
न जाने कब सहर आई कहाँ हंगाम-ए-शाम आया
मिरा आमाल-नामा घूमता था मेरी नज़रों में
जब अपने सामने ऐ 'चर्ख़' वक़्त-ए-इख़्तिताम आया
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