ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है
ये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(997) Peoples Rate This
चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद
बे-तकल्लुफ़ वो औरों से हैं
रहता है वहाँ ज़िक्र-ए-तुहूर-ओ-मय-ए-कौसर
या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए
वो जाने कितना सर-ए-बज़्म शर्मसार हुआ
ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ
दुनिया पे ऐसा वक़्त पड़ेगा कि एक दिन
तरतीब दे रहा था मैं फ़हरिस्त-ए-दुश्मनान
रिंद जन्नत में जा भी चुके
यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे
हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं