गुल तो गुल ख़ार तक चुन लिए हैं
फिर भी ख़ाली है गुलचीं का दामन
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ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त
तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ
इक तुझ को देखने के लिए बज़्म में मुझे
दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा
साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है
जब मेरे रास्ते में कोई मय-कदा पड़ा
हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया
ऐ जल्वा-ए-जानाना फिर ऐसी झलक दिखला
मुझे रुतबा-ए-ग़म बताना पड़ेगा
तरतीब दे रहा था मैं फ़हरिस्त-ए-दुश्मनान