जब्त Poetry (page 8)

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त

ग़ालिब

महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में

ग़ालिब

गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है

ग़ालिब

गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

कहाँ वो ज़ब्त के दावे कहाँ ये हम 'गौहर'

गौहर होशियारपुरी

दुखी दिलों में, दुखी साथियों में रहते थे

गौहर होशियारपुरी

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल चोट सहे और उफ़ न करे ये ज़ब्त की मंज़िल है लेकिन

फ़िगार उन्नावी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है

फ़िगार उन्नावी

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

फ़िगार उन्नावी

ज़िंदगी साज़-ए-शिकस्ता की फ़ुग़ाँ ही तो नहीं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती

फ़ारूक़ बाँसपारी

जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना

फ़ारूक़ बाँसपारी

इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के

फ़ारिग़ बुख़ारी

तिरा जल्वा शाम-ओ-सहर देखते हैं

फ़रहत कानपुरी

इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से

फ़रहत कानपुरी

वो मेरे बारे में ऐसे भी सोचता कब था

फ़रह इक़बाल

तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा

फ़ानी बदायुनी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है

फ़ानी बदायुनी

नहीं मंज़ूर तप-ए-हिज्र का रुस्वा होना

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

बे-ख़ुदी पे था 'फ़ानी' कुछ न इख़्तियार अपना

फ़ानी बदायुनी

ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया

फ़ानी बदायुनी

अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है

फ़ानी बदायुनी

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