कहाँ वो ज़ब्त के दावे कहाँ ये हम 'गौहर'
कि टूटते थे न फिर टूट कर बिखरते थे
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सर पर कोई आसमान रख दे
दुखी दिलों में, दुखी साथियों में रहते थे
ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है
फूलों में वही तो फूल ठहरा
बंदों का मिज़ाज हम ने देखा
दरिया में ये नाव किस तरफ़ है
मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था
शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की
दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे
नाव न डूबी दरिया में
हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं