फूलों में वही तो फूल ठहरा
जो तेरे सलाम को खिला हो
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अपना दुखड़ा कहते हैं
मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था
यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
उजले मैले पेश हुए
बंदों का मिज़ाज हम ने देखा
मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो
दरिया में ये नाव किस तरफ़ है
समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे
इक साया-ए-शाम याद आया
हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं
है जो भी जज़ा सज़ा अता हो