ज़ीस्त Poetry (page 21)

बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया

अब्दुल हमीद अदम

आज फिर रूह में इक बर्क़ सी लहराती है

अब्दुल हमीद अदम

बहार बन के ख़िज़ाँ को न यूँ दिलासा दे

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात

अब्दुल अहद साज़

ये तो नहीं फ़रहाद से यारी नहीं रखते

अब्बास ताबिश

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

अब्बास ताबिश

ख़मोश बैठे हो क्यूँ साज़-ए-बे-सदा की तरह

अातिश बहावलपुरी

वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है

आसी ग़ाज़ीपुरी

तुम्हारे नाम के नीचे खिंची हुई है लकीर

आनिस मुईन

हवा चली है न पत्ता कोई हिला अब तक

आनन्द सरूप अंजुम

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी

आल-ए-अहमद सूरूर

दिल में तिरे ऐ निगार क्या है

आग़ा अकबराबादी

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