ज़ीस्त Poetry (page 20)

काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए

अहमद फ़रहाद

'मीर' के मानिंद अक्सर ज़ीस्त करता था 'फ़राज़'

अहमद फ़राज़

मयूरका

अहमद फ़राज़

इंतिसाब

अहमद फ़राज़

गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा

अहमद फ़राज़

सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें

अहमद अता

आवाज़ का उस की ज़ेर-ओ-बम कुछ याद रहा कुछ भूल गए

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

मिरे करीम इनायत से तेरी क्या न मिला

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैं

अफ़ज़ल परवेज़

मिटते हुए नुक़ूश-ए-वफ़ा को उभारिए

अफ़ज़ल मिनहास

गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है

अफ़रोज़ आलम

बड़ा ख़ुशनुमा ये मक़ाम है नई ज़िंदगी की तलाश कर

अफ़रोज़ आलम

चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को

आदिल मंसूरी

क़फ़स से छुटने पे शाद थे हम कि लज़्ज़त-ए-ज़िंदगी मिलेगी

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो

अबु मोहम्मद वासिल

ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा

अबु मोहम्मद सहर

सब इक न इक सराब के चक्कर में रह गए

अबु मोहम्मद सहर

फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र

आबरू शाह मुबारक

न जाने रब्त-ए-मसर्रत है किस क़दर ग़म से

आबिद नामी

ज़मीं से चल के तो पहुँचा हूँ आसमाँ तक मैं

आबिद हशरी

हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना

अब्दुल्लाह जावेद

नई ग़ज़ल का नई फ़िक्र-ओ-आगही का वरक़

अब्दुल वहाब सुख़न

ग़म से घबरा के कभी नाला-ओ-फ़रियाद न कर

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

मैं शब-ए-हिज्र क्या करूँ तन्हा

अब्दुल मतीन नियाज़

तू जो आबाद है ऐ दोस्त मिरे दिल के क़रीब

अब्दुल मलिक सोज़

जो उन्हें वफ़ा की सूझी तो न ज़ीस्त ने वफ़ा की

अब्दुल मजीद सालिक

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से

अब्दुल मजीद सालिक

हवा सनके ख़ारों की बड़ी तकलीफ़ होती है

अब्दुल हमीद अदम

दिल है बड़ी ख़ुशी से इसे पाएमाल कर

अब्दुल हमीद अदम

दिल डूब न जाएँ प्यासों के तकलीफ़ ज़रा फ़रमा देना

अब्दुल हमीद अदम

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