ज़ीस्त Poetry (page 3)

जिस बात को सुन कर तुझे तकलीफ़ हुई है

वक़ार वासिक़ी

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

वक़ार ख़ान

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें

वलीउल्लाह मुहिब

देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत

वकील अख़्तर

जहालत का मंज़र जो राहों में था

वकील अख़्तर

मौत की जुस्तुजू

वहीद अख़्तर

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

वहीद अख़्तर

दिल प्यार के रिश्तों से मुकर भी नहीं जाता

वली मदनी

मुमकिन नहीं है अपने को रुस्वा वफ़ा करे

वफ़ा बराही

आख़िरी मुलाक़ातें

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे

तिलोकचंद महरूम

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

फ़ित्ना-आरा शोरिश-ए-उम्मीद है मेरे लिए

तिलोकचंद महरूम

बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या

तिलोकचंद महरूम

मुस्कुराते हुए फूलों का अरक़ सब का है

तिलक राज पारस

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

मुझे भी नीम के जैसा न कर दे

तनवीर गौहर

बातिल-ओ-ना-हक़ से उम्मीद-ए-करम करते रहे

तनवीर गौहर

वो रक़्स कहाँ और वो तब-ओ-ताब कहाँ है

तनवीर अहमद अल्वी

ग़म-ए-दिल की ज़बाँ अहल-ए-तशद्दुद कम समझते हैं

तालिब चकवाली

जुनूँ ने ज़हर का पियाला पिया आहिस्ता आहिस्ता

तलअत इशारत

वफ़ा का ज़िक्र छिड़ा था कि रात बीत गई

तैमूर हसन

ख़्वाब डसते रहे बिखरते रहे

ताहिरा जबीन तारा

आँखों में है कैसा पानी बंद है क्यूँ आवाज़

ताहिर अदीम

लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

वो जो मिलता था कभी मुझ से बहारों की तरह

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

तूफ़ाँ नहीं गुज़रे कि बयाबाँ नहीं गुज़रे

सय्यद ज़मीर जाफ़री

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