निकासी Poetry (page 2)

नज़्म

ज़ीशान साहिल

कैसी ज़मीं सुकून कहाँ का कहाँ की छाँव

ज़िशान इलाही

रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो

ज़ेब ग़ौरी

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

ज़ेब ग़ौरी

मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे

ज़ेब ग़ौरी

खुली थी आँख समुंदर की मौज-ए-ख़्वाब था वो

ज़ेब ग़ौरी

बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का

ज़ेब ग़ौरी

अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का

ज़ेब ग़ौरी

मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा

ज़मान कंजाही

जिस्म ताज़ा गुलाब की सूरत

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दर्द शायान-ए-शान-ए-दिल भी नहीं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

पुरवाइयों से लड़ती हैं पच्छिम की आँधियाँ

ज़काउद्दीन शायाँ

हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी

ज़काउद्दीन शायाँ

हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

अब अश्क तो कहाँ है जो चाहूँ टपक पड़े

ज़हूरुल्लाह बदायूनी नवा

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

तपिश से फिर नग़्मा-ए-जुनूँ की सुरूद-ओ-चंग-ओ-रबाब टूटे

ज़ाहिदा ज़ैदी

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं

ज़ाहिद फ़ारानी

ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए

ज़हीर सिद्दीक़ी

कुफ़्र में भी हम रहे क़िस्मत से ईमाँ की तरफ़

ज़हीर देहलवी

बे-हिसी पर हिस्सियत की दास्ताँ लिख दीजिए

ज़फ़र सहबाई

कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

खिड़की से महताब न देखो

ज़फ़र कलीम

राब्ता क्यूँ रखूँ मैं दरिया से

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

एक इक पल तिरा नायाब भी हो सकता है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ज़िंदा भी ख़ल्क़ में हूँ मरा भी हुआ हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

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