पुरवाइयों से लड़ती हैं पच्छिम की आँधियाँ
सुल्ह-पसंद आब-ओ-हवा किस के पास है
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क़यामत का कोई हंगाम उभरे
महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर
तंग कमरों में है महबूस फ़ज़ा का मतलब
उभरता चाँद सियह रात के परों में था
ख़ाक हम मुँह पे मले आए हैं
हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी
सियह बिस्तर पड़े हैं सुब्ह-ए-नज़्ज़ारा उतर आए
रौशनी लटकी हुई तलवार सी
दरिया का चढ़ाव बाँध लेना
रात आँसू को तिरी आँख में देखा हम ने