आस Poetry (page 10)
आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी
बशीर बद्र
तुम कब थे क़रीब इतने मैं कब दूर रहा हूँ
बाक़ी सिद्दीक़ी
आस्तीं में साँप इक पलता रहा
बाक़ी सिद्दीक़ी
पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया
अज़रा वहीद
इस ज़िंदगी के बदले
अज़रा अब्बास
कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
अज़्म बहज़ाद
हर आईना इक अक्स-ए-नौ ढूँडता है
अज़ीज़ तमन्नाई
सुब्ह और शाम के सब रंग हटाए हुए हैं
अज़ीज़ नबील
बिखेरता है क़यास मुझ को
अज़ीज़ नबील
मैं उस की बात के लहजे का ए'तिबार करूँ
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
मैं अपने शहर में अपना ही चेहरा खो बैठा
अज़हर नैयर
तिरे ब'अद कोई भी ग़म असर नहीं कर सका
अज़हर फ़राग़
हम उन की आस पे उम्रें गुज़ार देते हैं
अज़हर अदीब
तेरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है
अज़ीम मुर्तज़ा
तिरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है
अज़ीम मुर्तज़ा
दिए अपनी ज़ौ पे जो इतरा रहे हैं
आतिफ़ ख़ान
करता मैं अब किसी से कोई इल्तिमास क्या
अतहर नादिर
काश समझदार न बनूँ
अतीया दाऊद
जीवन-भर की आस है तू
अतीक़ुर्रहमान सफ़ी
रात वहशत से गुरेज़ाँ था मैं आहू की तरह
अता तुराब
सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
सुना है चाँदनी-रातों में अक्सर तुम
असरा रिज़वी
पत्थरों पर वादियों में नक़्श-ए-पा मेरा भी है
असलम महमूद
कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं
असलम आज़ाद
कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं
असलम आज़ाद
थीं ज़मीनें गुम-शुदा और आसमाँ मिलता न था
अशरफ़ शाद
पीला था चाँद और शजर बे-लिबास थे
अशफ़ाक़ नासिर
किसी की चाह में ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
असग़र वेलोरी
जला जला के दिए पास पास रखते हैं
असग़र मेहदी होश
बचपन तमाम बूढ़े सवालों में कट गया
असग़र मेहदी होश
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