आशना Poetry (page 14)

हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने

दिवाकर राही

मर्दुम-गज़ीदा इंसान का इलाज

दिलावर फ़िगार

ज़िंदगी क्या है इब्तिला के सिवा

द्वारका दास शोला

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

ढूँढने से यूँ तो इस दुनिया में क्या मिलता नहीं

दत्तात्रिया कैफ़ी

इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे

दत्तात्रिया कैफ़ी

ढूँढने से यूँ तो इस दुनिया में क्या मिलता नहीं

दत्तात्रिया कैफ़ी

सामने जो कहा नहीं होता

दरवेश भारती

कहीं जमाल-ए-अज़ल हम को रूनुमा न मिला

दर्शन सिंह

जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है

दर्शन सिंह

बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर

दर्शन सिंह

आँखें भी हाए नज़अ में अपनी बदल गईं

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

कल तक तो आश्ना थे मगर आज ग़ैर हो

दाग़ देहलवी

ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए

दाग़ देहलवी

मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है

दाग़ देहलवी

जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता

दाग़ देहलवी

किसी ने बा-वफ़ा समझा किसी ने बेवफ़ा समझा

डी. राज कँवल

बे-ख़ुदी में है न वो पी कर सँभल जाने में है

चरख़ चिन्योटी

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

सोज़-ए-फ़िराक़ दिल में छुपाए हुए हैं हम

बबल्स होरा सबा

मसर्रत को मसर्रत ग़म को जो बस ग़म समझते हैं

ब्रहमा नन्द जलीस

पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

बे-तअल्लुक़ सारे रिश्ते कौन किस का आश्ना

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है

बेखुद बदायुनी

क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा

बेखुद बदायुनी

काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ हो

बेदम शाह वारसी

कोई किसी का कहीं आश्ना नहीं देखा

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

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