आसमाँ Poetry (page 34)

समुंदर पार आ बैठे मगर क्या

अब्दुल्लाह जावेद

लगे है आसमाँ जैसा नहीं है

अब्दुल्लाह जावेद

कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा

अब्दुल्लाह जावेद

इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त

अब्दुल्लाह जावेद

ग़ज़ल में फ़न का जौहर जब दिखाते हैं ग़ज़ल वाले

अब्दुल मन्नान तरज़ी

दिल की पर्वाज़ है ला-मकाँ तक

अब्दुल मन्नान तरज़ी

नज़र की वुसअतों में कुल जहाँ था

अब्दुल मन्नान समदी

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से

अब्दुल मजीद सालिक

जो मुश्त-ए-ख़ाक हो उस ख़ाक-दाँ की बात करो

अब्दुल मजीद सालिक

फ़क़ीर किस दर्जा शादमाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा

अब्दुल हमीद अदम

नक़्श-ए-दिल है सितम जुदाई का

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

हों क्यूँ न मुन्कशिफ़ असरार पस्त-ओ-बाला के

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

अपनी हस्ती से था ख़ुद मैं बद-गुमाँ कल रात को

अब्दुल अलीम आसि

अबस है राज़ को पाने की जुस्तुजू क्या है

अब्दुल अहद साज़

मुझे रस्ता नहीं मिलता

अब्बास ताबिश

अँदेशा-ए-विसाल की एक नज़्म

अब्बास ताबिश

रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया

अब्बास ताबिश

दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता

अब्बास ताबिश

जहाँ सारे हवा बनने की कोशिश कर रहे थे

अब्बास क़मर

फिर वही अंदोह-ए-जाँ है और मैं

अब्बास कैफ़ी

उस की वफ़ा न मेरी वफ़ा का सवाल था

अब्बास दाना

जो सारे हम-सफ़र इक बार हिर्ज़-ए-जाँ कर लें

अब्बास अलवी

ख़याल-ए-यार का जल्वा यहाँ भी था वहाँ भी था

आज़िम कोहली

लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे

अातिश बहावलपुरी

दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए

आसी रामनगरी

असीरान-ए-क़फ़स ऐसा तो हो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ अपना

आसी रामनगरी

उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था

आसी ग़ाज़ीपुरी

कोई ग़ुल हुआ था न शोर-ए-ख़िज़ाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ

आलोक श्रीवास्तव

अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले

आलोक श्रीवास्तव

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