आसमाँ Poetry (page 2)

दुनिया वो रास्ते की रुकावट है दोस्तो

ज़ीशान साजिद

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

हो चुके गुम सारे ख़द्द-ओ-ख़ाल मंज़र और मैं

ज़ेब ग़ौरी

बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का

ज़ेब ग़ौरी

उस शाम को जब रूठ के में घर से चला था

ज़मीर काज़मी

मेरे ख़्वाबों का कभी जब आसमाँ रौशन हुआ

ज़की तारिक़

है मेरे सर से कोई बोझ उतारने वाला

ज़ाहिद फ़ारानी

बिसात-ए-शौक़ के मंज़र बदलते रहते हैं

ज़ाहिद फ़ारानी

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

जब आशिक़ी में मेरा कोई राज़-दाँ नहीं

ज़ाहिद चौधरी

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

हाँ वो मैं ही था कि जिस ने ख़्वाब ढोया सुब्ह तक

ज़हीर सिद्दीक़ी

मुज़्महिल होने पे भी ख़ुद को जवाँ रखते हैं हम

ज़हीर काश्मीरी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

तमाम शहर में कोई भी रू-शनास न था

ज़फ़र सिद्दीक़ी

सिमटूँ तो सिफ़्र सा लगूँ फैलूँ तो इक जहाँ हूँ मैं

ज़फ़र कलीम

खुल गईं आँखें कि जब दुनिया का सच हम पर खुला

ज़फ़र कलीम

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले

ज़फ़र इक़बाल

तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

खिड़कियाँ किस तरह की हैं और दर कैसा है वो

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

ज़फ़र गोरखपुरी

जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीं ही काम आएगी

ज़फ़र गोरखपुरी

चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया

ज़फ़र गौरी

इंक़लाब-ए-हिन्द

ज़फ़र अली ख़ाँ

हिन्दोस्तान

ज़फ़र अली ख़ाँ

ख़याल-ए-ताज़ा से करते हैं ख़्वाब-ए-नौ तख़्लीक़

ज़फ़र अज्मी

उम्मीद-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ से खींचते हैं

ज़फ़र अज्मी

सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम

यज़दानी जालंधरी

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