आसमाँ Poetry (page 33)

वो मर गई थी

आदिल मंसूरी

सियाह चाँद के टुकड़ों को मैं चबा जाऊँ

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

सोए हुए पलंग के साए जगा गया

आदिल मंसूरी

कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ

आदिल मंसूरी

जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे

अदीम हाशमी

डराएगी भला क्या तेरी गर्दिश आसमाँ मुझ को

अदील ज़ैदी

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अदीब सहारनपुरी

अचानक दिलरुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना

अदा जाफ़री

नक़्श-ए-यक़ीं तिरा वजूद-ए-वहम बुझा गुमाँ बुझा

अबुल हसनात हक़्क़ी

तेग़-ए-जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

कोह-ए-ग़म से क्या ग़रज़ फ़िक्र-ए-बुताँ से क्या ग़रज़

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं

आबरू शाह मुबारक

मिट्टी थी किस जगह की

अबरार अहमद

मेरे पास क्या कुछ नहीं

अबरार अहमद

मौत दिल से लिपट गई उस शब

अबरार अहमद

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

ये यक़ीं ये गुमाँ ही मुमकिन है

अबरार अहमद

मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ

आबिद मुनावरी

जब आसमान पर मह-ओ-अख़्तर पलट कर आए

आबिद मुनावरी

गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए

आबिद मलिक

किसे ख़बर थी कि ख़ुद को वो यूँ छुपाएगा

आबिद ख़ुर्शीद

ज़मीं से चल के तो पहुँचा हूँ आसमाँ तक मैं

आबिद हशरी

मक़ाम-ए-वस्ल तो अर्ज़-ओ-समा के बीच में है

अभिषेक शुक्ला

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

वो क़यामत थी कि रेज़ा रेज़ा हो के उड़ गया

अब्दुल्लाह कमाल

वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा

अब्दुल्लाह कमाल

क़दम क़दम पे नया इम्तिहाँ है मेरे लिए

अब्दुल्लाह कमाल

बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ

अब्दुल्लाह कमाल

ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ

अब्दुल्लाह जावेद

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